उस कमरे में एक अरसे से रात ठहरी थी
वो कही नहीं जाती
बस वहीं एक कोने में सिमट के पड़ी थी
बिखरी सी सिमटी थी
माँ जैसे करीने से कपड़ो की तह लगाती थी
वैसे ही उसका आँचल पड़ा था
रात का आँचल ओढ़े वो रौशनी की सेंध लगाती थी
एक अरसे से रौशनी को ढूंढते
उसने उस ठहरी रात से दोस्ती कर ली ।
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painfully beautiful.. Love!
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